Thursday, July 22, 2010

hii todays thought

ARE YOU SHY?
जब भी तुम किसी से बात करते हो, तो क्या तुम्हारा कॉन्फिडेंस लेवॅल डाउन रहता है?

क्या तुम्हारी आवाज में दम नहीं होता? क्या तुम्हें मुस्कुराने में भी हिचक होती है? क्या तुम बार-बार अपने बालों या चेहरे को छूते रहते हो और खुद को अपने पैरेन्ट्स या फिर किसी अन्य चीजों के पीछे छिपाने की कोशिश करते रहते हो? अगर इन प्रश्नों का उत्तर हां है, तो यह मान लो कि तुम भी शर्मीले स्वभाव के हो। तुम्हारा यह सवाल हो सकता है कि क्या शर्मीला स्वभाव होना गलत बात है? आओ जानते हैं इस बारे में विशेषज्ञों की राय क्या है?

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में शर्मीलेपन को लेकर एक अध्ययन किया गया, जिसमें जेनेटिक व एनवॉरनमेंटल फैक्टर्स यानी कि आनुवंशिकता व माहौल को बहुत हद तक जिम्मेदार माना गया। रिसर्च के बाद पता चला कि अधिकांश शर्मीले बच्चे सामाजिक दायरे से दूर होते जाते हैं, जिसके चलते व्यक्तिगत जीवन में भी उन्हें कई तरह की परेशानियां होने लगती हैं। खासतौर पर आपातकालीन परिस्थिति में ऐसे बच्चों के न सिर्फ दिलों की धडकनें असामान्य रूप से तेज गति से चलने लगती हैं, बल्कि पैर भी थरथराने लगते हैं। कुल मिलाकर, यह पाया गया कि ऐसे बच्चों के अंदर संघर्ष करने की क्षमता कम हो जाती है।

साइंस जर्नल का शोध

एक अन्य शोध की बात करें, तो नतीजा कुछ अलग ही निकलता है। साइंस जर्नल के एक अध्ययन के मुताबिक कोई भी बच्चा जन्म से शर्मीला नहीं होता। जीवन के अच्छे-बुरे अनुभव उन्हें शर्मीला बनने पर मजबूर कर देता है। शर्मीलेपन की बॉयॅलॉजि पर रिसर्च करने वाले डॉ. अमान्डा गॉयर का मानना है कि ब्रेन का हिस्सा (striatum), जो कि चिंता व खुशी के लिए जिम्मेदार होता है, शर्मीले स्वभाव के बच्चों में कुछ ज्यादा संवेदनशील होता है। डॉ. गॉयर के मुताबिक, शर्मीले स्वभाव के बच्चे बेशक कुछ कम बोलने वाले, बातचीत में कमजोर या फिर डरपोक किस्म के हों, मगर एक अच्छे लिसॅनर जरूर होते हैं। चाहे वे किसी भी बात पर रिएक्ट करें या न करें मगर रिस्पॉन्स जरूर देते हैं। हां, ऐसे बच्चों के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग जरूर उनकी छवि को गलत ढंग से पेश कर उनका आत्मविश्वास छीनने की कोशिश करते हैं।

दरअसल, बच्चों का स्वभाव परिवेश के मुताबिक बदलता रहता है। ऐसे बच्चे, जिन्हें हम शुरू में शर्मीला कह कर नकारते रहते हैं, जब जिंदगी में सफल हो जाते हैं, तो फिर सबसे बडे कॉन्फिडेंस के साथ मिलते हैं। फिर तो वे सभी से आंख से आंख मिला कर बातें करते हैं, चेहरे पर गंभीरता तो होती है, मुस्कुराहट से आत्मविश्वास भी झलकता है।

मनोवैज्ञानिक डॉ. सोना कौशल भारती की राय

सबसे पहले तो हमें यह समझना चाहिए कि शर्मीलापन या शायनेस आखिर है क्या? इसके बाद यह भी देखना होगा कि शर्मीलापन बच्चों के लिए अच्छा है या बुरा? और अंत में यह भी जानना जरूरी होगा कि वैसे बच्चे, जो शर्मीले हैं, किस तरह अपने स्वभाव में बदलाव लाएं?

दरअसल, दो तरह के बच्चे होते हैं - एक्स्ट्रोवर्ट या बहिर्मुखी और इन्ट्रोवर्ट या अंतर्मुखी। जो बच्चे अंतर्मुखी स्वभाव के होते हैं, उनमें शायनेस या शर्मीलेपन का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि, मुख्य रूप से दो बातें इसके लिए जिम्मेदार होती हैं - एक तो जेनेटिक फैक्टर्स और दूसरा परिवेश या पारिवारिक माहौल। कोई बच्चा शर्मीला होगा या बोल्ड, यह बहुत हद तक उस माहौल पर निर्भर करता है, जिसमें वह पला-बढा है। अगर किसी बच्चे को बात-बात में डांट पडती है, तो उसका कॉन्फिडेंस लेवॅल डाउन हो जाता है और उसमें हीन-भावना आ जाती है। यहीं से शुरू होता है शर्माने का सिलसिला। फिर चाहे स्कूल हो या घर, ऐसे बच्चों को अपनी बात रखने में डर लगने लगता है। कई बार प्रश्नों का हल जानते हुए भी ये बता नहीं पाते और दूसरों से पीछे होते जाते हैं। अब सवाल उठता है कि ऐसे बच्चे आखिर क्या करें? यहां एक बात जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि बच्चों को अपनी नैचुरेलिटी या यूं कहें कि अपने मूल स्वभाव का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। जैसे, मान लीजिए कि कुछ बच्चे अंग्रेजी में अच्छी तरह बात कर लेते हैं, तो वैसे बच्चे जिनका माध्यम हिंदी है, उन्हें इनकी जबरदस्ती नकल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

यदि वे अंग्रेजी बोलना सीख लेते हैं, तो यह अच्छी बात है, मगर यदि वे सहजता से अंग्रेजी में नहीं बोल पाते, तो कोई बात नहीं। उन्हें अपने मूल स्वभाव से अलग हट कर जबरदस्ती अंग्रेजी बोलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। कुल मिलाकर, आप जो भी हैं, जैसे भी हैं, अच्छे हैं- इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।

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